संस्कृत प्रहेलिका (Sanskrit Riddles)

बुद्धि की तार्किक क्षमता के लिए प्राचीन काल से ही प्रहेलिकाओ का प्रयोग होता रहा है। भारतीय संस्कृत साहित्य में प्रहेलिका का प्रयोग हमें इंगित करता है कि इसका प्रयोग बुद्धि परीक्षण के लिए विद्वानों द्वारा यथा सम्भव किया है। प्रहेलिका के माध्यम से संस्कृत की विशिष्टता का ज्ञान होता है।

प्रहेलिका का सामान्य अर्थ है- किसी वाक्य का विशेष अर्थ । प्रहेलिकाएं वाक्य रूप में, भ्रामक रूप में,  प्रश्न रूप में, किसी वस्तु के गुण को प्रकट करने के रूप में हो सकती है।

प्रहेलिका का प्रयोग मनोरंजन दृष्टि से ही नहीं होता है अपितु ज्ञान-तर्क-चिन्तन आदि की क्षमता बढ़ाने के लिए भी तथा जनाने के लिए भी होता है। आज हम संस्कृत प्रहेलिका (Sanskrit Riddles) पढ़ेगें। इनका प्रयोग नित्य वाक् व्यवहार में करने से अधिकाधिक लाभ प्राप्त होगा ।।

मेघश्यामोऽस्मि नो कृष्णो, महाकायो न पर्वतः ।

बलिष्ठोऽस्मि न भीमोऽस्मिकोऽस्म्यहं नासिकाकरः ।।

कृष्ण नहीं पर हूं मैं काला, पर्वत जैसा शरीर वाला। भीम नही पर हूं बलवान, लम्बे मेरे कान व नाक। चाल-चलन में मस्त जवान, बूझे मुझको बुद्धिमान।

उत्तर- हाथी

एकाकी द्वारी तिष्ठामि गृहपतौ बहिर्गते।

गृहरक्षाकरः शुरो लघुमूर्तिः सुकीर्तिमान्।।

जब घर का स्वामी बाहर जाता है मैं अकेला घर के बाहर राह देखता हूं। मैं घर की रक्षा करने वाला शुर हूँ। मैं दिखने में छोटा हूँ लेकिन मेरा कार्य बड़ा है।

उत्तर- ताला (तालः)।

स्नेहं ददाति यो मह्यं, नित्यं तस्मै ददाम्यहम् ।

ज्योतिः पदार्थज्ञानार्थंकोऽपि वदतु साम्प्रतम् ।।

देता है जो भोजन पान, मैं उसको देता ज्ञान। पूरी रात जले है प्राण, ज्योति प्रकाश का मैं खान। नाम कहो मेरा बलवान, बूझे मुझको वीर- महान।

उत्तर- दीपक

वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः, त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः ।

त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्ध योगीजलं च बिप्रन्ह घटोत्कचः न मेघः ।।

वृक्ष पर रहने वाला है परन्तु पक्षियों का राजा गरूड़ नही, तीन आंखों वाला परन्तु त्रिशूल धारी शिव नही, छाल रूपी वस्त्र धारी परन्तु तपस्वी साधक नही, जल धारण करने वाला है परन्तु घड़ा व बादल  नही।

उत्तर- नारियल

न तस्यादिः न तस्यान्तः मध्ये यः तस्य तिष्ठति।

तवाप्यस्ति ममाप्यस्ति यदि जानासि तद्वद।।

अर्थ -जिसके प्रारंभ में भी नकार (न) है और अंत में भी नकार(न) है। बीच मे उसके यकार(य) वह तेरे पास भी है और मेरे पास भी, वह क्या ?

उत्तर- नयन

वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः

तृणं च शय्या न च राजयोगी।

सुवर्णकायो न च हेमधातुः

पुंसश्च नाम्ना न च राजपुत्रः।।

अर्थ- यह ऐसा राजा है, जो झाड़ पर रहता है पर पक्षी (पक्षिराज) नहीं। तृण की शय्या है पर तपस्वी (योगिराज) नहीं। सुनहरा का शरीर है लेकिन स्वर्ण धातु नहीं। पुल्लिङ्ग है पर राजकुमार नहीं।

ऐसा कौन?

उत्तर- आम

अस्ती कुक्षी शिरो नास्ती

बाहु रस्ती निरंगुली।

अहतो नर भक्शीचा

यो जनाती स: पंडितः ।।

अर्थ- वह क्या है जिसका पेट है किंतु सिर नही है, हाथ है किंतु उंगलियां नही है, और जो व्यक्ति के शरीर को समाए रखता है। जो मुझे खोजेगा वह ज्ञाता कहलाएगा।

उत्तर- युतकम् (कमीज) shirt

कृष्णमुखी न मार्जारी द्विजिह्वा न च सर्पिणी ।
पञ्चभर्ता न पाञ्चाली यो जानाति स पण्डितः ॥

अर्थ-
काले मुँह वाली किंतु वह बिल्ली नहीं, दो जीभ वाली किंतु सर्पिणी नहीं, जिसके पाँच रखवाले है किंतु वह द्रौपदी नहीं। जो जानेगा पंडित कहलाएगा।


उत्तर- कलम (लेखनी)

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